रविवार, 3 मई 2015

पांव अब भी इसी जमीन पे हैं।

जो दे अब भी खुशी, पुरानी जेब का वो सौ का नोट
तो जान लो कि पांव अब भी इसी जमीन पे हैं।

बचपन के दोस्तों से मिलो अब भी जो गले लग कर,
तो जान लो कि पांव अब भी इसी जमीन पे हैं।

साबुन को इस्तेमाल करो घिस के पतला होने तक,
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

गली में खेलते बच्चों की लपक लो तुम जो गेंद कभी,
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

माँ के हाथ की रोटी जो लगे पिझ्झा से प्यारी,
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

बच्चों को कहानी सुनालो जो किसी रात को तुम,
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

किसी बुजुर्ग को देखते ही रोक लो जो कार,
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

मेहमाँ के आते ही खिल जाये अब भी जो बाँछें
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।

नयी जिंदगी में जो याद आयें पुराने हमदम
तो जान लो कि पाँव अब भी इसी जमीन पे हैं।



चित्र गूगल से साभार
इस कविता का आधार वॉटसएप पर पोस्टेड एक मराठी गद्य कविता है।




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