रविवार, 26 मई 2013

चंद शेर





जिसके खयाल ही से रूह काँपती है मेरी,
वही दे रहा है है दस्तक मेरे किवाड पे ।

दीवारों के कान होते हैं कहावत ही है लैकिन
लगता कि उगे कान हैं, आंगन की बाड पे ।

हम नासमझ ही सही, समझदार भी देखें
जिनकी समझ के चर्चे हैं दुष्मन के द्वार पे ।

अपना समझ के जिनको गले से लगा लिया
वही ला रहे हैं खटमल पलंग की निवाड पे ।

बेहतर लिखा था जिसने, वो तो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं उनके कबाड पे ।

कानून व्यवस्था जो सरकार ना चलाय
गुंडा ये राज, जायें अब किसके द्वार पे ।

अब तो जाओ चेत, न रहो नींद में लोगों
चूके तो भुने जाओगे चनों की भाड पे ।









11 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अरे वाह ..

RC Mishra ने कहा…

नमस्ते आशा जी, आज कल आप एन्डर्सन मे हैं क्या?

Suman ने कहा…

बेहतर लिखा था जिसने, वो तो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं उनके कबाड पे ।
बहुत सुन्दर..

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सलाम है ऐसी कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल को - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

Har ek sher shandar.....jai hind

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

दीवारों के कान होते हैं कहावत ही है लैकिन
लगता कि उगे कान हैं, आंगन की बाड पे ।

YE WALA PYARA SA LAGA :)

Satish Saxena ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति...

रचना दीक्षित ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
खट्टी मीठी सी ग़ज़ल.....

सादर
अनु

Satish Saxena ने कहा…

बेहतर लिखा था जिसने, वो इग्नोर हो गया
ईनाम बट रहे हैं अब उनके कबाड पे ।

हा..हा..हा...हा..

मंगल कामनाएं आपके लिए !