सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

फूल खिल रहे हैं




शिशिर के कडाके की ठंड के बाद वसंत की गुनगुनी धूप सुहावनी लग रही थी । फूल खिल रहे थे, दो दिन की बारिश के बाद पेड पौधे सद्यस्नात धुले निखरे अपने प्राकृतिक हरितिमा की विभिन्न छटाएं बिखेर रहे थे और वसंतकुंज का पार्क अपने नाम को सार्थक कर रहा था । मुझे अचानक अक्का की याद हो आई । जब वह थी तो वसंत के फाग के कितने सुंदर सुंदर मधुर मधुर गीत गाया करती थी । शास्त्रीय संगीत जो सीखा था उसने ।

ग्वालिने ब्रज का फाग उत्सव देखने बडे चाव से जा रही हैं । पर असल प्यास तो कान्हा के दर्शन की है । वे गाती हुई जा रही हैं ।
फगवा, ब्रिज देखन को चलोSSरी,
फगवेSS मे मिलेंगे कुंवर कान्ह,
जहां, बाट चलSत बोSले कगवा
फगवा.........
sई बहाSर  सकSल बन फूSSले
रसिले लाSल को लेSS अगवा
फगवाS, ब्रिज देखन को चलोSS री ।

रास्ते में फूल खिले देख कर वे अपना मोह संवरण नही कर पातीं और फूल चुन चुन कर आंचल भर लेती हैं ।

फुलवा बीनत डारि डारि
गोकुल की सब कुवाँरि
चंद्र वदन दमकत ऐसे
भानु किशोSरीSS । फुलवा......

ले हो चलि चली कुंवारी
अपनो आंचल संवारि
आयेSS ब्रिज चंद्र लाल
एरी गुजरी । फुलवा....

रास्ते में मनचले ग्वाले कृष्ण के साथ , गोपियों को छेड रहे हैं, और वे झूटा क्रोध जताते हुए कहती हैं,


छांडो छांडो छेला मोरी बैंया
दुखत मोरी नरम कलाई
कैसे तुम कैसे तुम निडर लाल
मग रोकत पराई ।
छांडो छांडो छेला   मोरी बैंयां ।

कैसे तुम महाराज
आवत ना तोको लाज
जानो ना कंसा को राज
पकर मंगाये
बाकि फिरत दुहाई ।। छांडो छांडो ...

और फिर याद आता है स्कूल का वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा उत्सव । कैसे हम पीली साडी पहन कर स्कूल जाया करते थे । वसंत के गीतों की धूम मचती थी ।

बजती अली की शहनाई
बन फूलों के गांवों में
शिशिर झिनझिनी बांध रहा
वासंती के पावों में । बजती........

और
वसंत की बयार से ये दिगदिगंत छा गया
दुखों का अंत आ गया, कि लो वसंत आ गया
कि लो वसंत आ गया ।

कहीं पलाश सुर्ख हो के जिंदगी बिता रहा
पक्षियों का दल कहीं नवीन गीत गा रहा
लताओं के वो पीत पात झर गये जो थे सभी
नई उमर की कोंपलें नई उमर में हैं अभी । वसंत की बयार से

हवा चली नई महक को दूर तक लिये हुए
फूलों की तरह यहां पे दिल भी हैं खिले हुए
आ गया वसंत आज गाओ दे दे तालियां
कह रही है गेहूं की यूं बालियों से बालियाँ । वसंत की बयार से

और

आया वसंत आया वसंत खिल गये फूल लद गई डाल
भौरों ने गाना शुरू किया, पत्ते हिल कर दे चले ताल
हर फूल नई पोशाक पहन जग के आंगन में झूम गया
हर भौंरा मस्ती में भर कर हर नये फूल को चूम गया ।
आया वसंत आया वसंत

14-15 साल की उम्र, वसंत और ये गीत, कैसे तो मन डोलता था तब और आज भी इस अडसठ साल की उमर में कहीं तो गुदगुदा जाता ही है ।
कवियों का नाम याद नही बडी बेइन्साफी है । पर ये मेरी प्रिय कवितायें हर वसंत में याद आती हैं । यदि किसी को कवियों के नाम याद हों तो मुझे जान कर बहुत अच्छा लगेगा।
फिलहाल एन्जॉय वसंत ।

13 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

मन आनंदित .....आह्लादित ....झांकी भी देखी और मगन हो गीत भी गा लिए ...
बहुत सुंदर पोस्ट ...!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आनंदित करती लाजबाब बेहतरीन रचना,,,,

Recent Post: कुछ तरस खाइये

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पढ़कर और देखकर आनन्द आ गया..

Arvind Mishra ने कहा…

बासंती बेला आ गयी मानो

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वाह...मनमोहक चित्र और शाब्दिक चित्रण.....

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत प्यारे फोटोस हैं ....रिफ्रेशिंग

Dinesh pareek ने कहा…


बहुत गजब बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
आज की मेरी नई रचना

ये कैसी मोहब्बत है

खुशबू

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है आपने ..बहुत अच्छा लगता है आपका लिखा पढना :)

Suman ने कहा…

बहुत सुन्दर ताई,
चित्र और आपकी यह प्यारी सी प्रस्तुती !

Madhukar Psre ने कहा…

"आया वसन्त आया वसन्त खिल गए फूल लड़ गई डाल"चौथी कक्षा में पढ़ी थी

Madhukar Psre ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख