मंगलवार, 27 नवंबर 2012

नैन लगे उस पार


देह के अपने इस प्रांगण में
कितनी कीं अठखेली पिया रे
मधुघट भर भर के छलकाये
औ रतनार हुई अखियाँ रे  ।
खन खन चूडी रही बाजती
छम छम छम छम पायलिया रे
हाथों मेहेंदी पांव महावर
काजल से काली अंखियां रे
वसन रेशमी, रेशम तन पर
केश पाश में बांध हिया रे ।
कितने सौरभ सरस लुटाये
तब भी खिली रही बगिया रे ।

पर अब गात शिथिल हुई जावत
मधुघट रीते जात पिया रे  ।
पायल फूल कंगन नही भावत
ना मेहेंदी ना काजलिया रे
पूजा गृह में नन्हे कान्हा
मन में बस सुमिरन बंसिया रे ।
तुलसी का एक छोटा बिरवा
एहि अब रहत मोर बगिया रे

सेवा पहले की याद करि के
रोष छोड प्रिय करो दया रे ।
दिन तो डूब रहा जीवन का
सांझ ढले, फिर रात पिया रे
नही इस पार जिया अब लागत
नैन लगे उस पार पिया रे ।

यह कविता कविवर्य (स्व.) भास्कर रामचंद्र तांबे जी  की 'रिकामें मधुघट' ( खाली मधुघट) की संकल्पना पर आधारित है ।
आशा है आपको पसंद आयेगी ।

यहां से अब परसो दिल्ली जाना है , पहले लंबा सफर, फिर घर की साफ सफाई । वापस ढर्रे पर लौटने तक शायद
ब्लॉग पर समय ना दे पाऊँ । आपका स्नेह वापसी पर मिलता रहेगा इसी आशा के साथ ।




21 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

यमुना बैरिन क्यूँ हुई, मथुरा बसते श्याम ।

विरह वियोगिन बन पड़ी, छूटे काम तमाम ।।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नयन लगे उस पार, स्रवति मन झरि झरि गावत,
मन में हाहाकार, नहीं जग रोचत, भावत।

virendra sharma ने कहा…



देह के अपने इस प्रांगण में
कितनी कीं अठखेली पिया रे
मधुघट भर भर के छलकाये
औ रतनार हुई अखियाँ रे ।
खन खन चूडी रही बाजती
छम छम छम छम पायलिया रे
हाथों मेहेंदी पांव महावर
काजल से काली अंखियां रे
वसन रेशमी, रेशम तन पर
केश पाश में बांध हिया रे ।
कितने सौरभ सरस लुटाये
तब भी खिली रही बगिया रे ।

पर अब गात शिथिल हुई जावत
मधुघट रीते जात पिया रे ।
पायल फूल कंगन नही भावत
ना मेहेंदी ना काजलिया रे ।
पूजा गृह में नन्हे कान्हा
मन में बस सुमिरन बंसिया रे ।
तुलसी का एक छोटा बिरवा
एहि अब रहत मोर बगिया रे

सेवा पहले की याद करि के
रोष छोड प्रिय करो दया रे ।
दिन तो डूब रहा जीवन का
सांझ ढले, फिर रात पिया रे ।
नही इस पार जिया अब लागत
नैन लगे उस पार पिया रे ।

बांसुरी की मधुर माधुरी सी रचना पढवाई है आपने .लौट लौट के आयेंगे रसास्वादन के लिए ,आयेंगे क्यों

नहीं .

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह अद्भुत रचना लाजवाब
अरुन शर्मा
www.arunsblog.in

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कविता में माधुर्य भाव के साथ अध्यात्म का पुट गहनता में वृद्धि कर रहा है -सुन्दर निरूपण .
- आपके लौटने की प्रतीक्षा रहेगी .

vandana gupta ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत खूब ... यात्रा के लिए शुभकामनायें स्वीकार करें !


नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाने सरबत दा भला - ब्लॉग बुलेटिन "आज गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व और कार्तिक पूर्णिमा है , आप सब को मेरी और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से गुरुपर्व की और कार्तिक पूर्णिमा की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और मंगलकामनाएँ !”आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,

resent post : तड़प,,,

Anupama Tripathi ने कहा…

नैहरवा हमका न भावे .....बहुत ही सुंदर उत्कृष्ट रचना ....शुभकामनायें ....!!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

खूबसूरत रचना

Arvind Mishra ने कहा…

वाह खूबसूरत रचना !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत प्यारी रचना...
सादर
अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत प्यारी रचना ....

Swapnil Shukla ने कहा…

आपके द्वारा लिखी गई हर पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत होती हैं....... आपकी समस्त रचनाओं को लिये आपको नमन .....

कृ्पा कर एक बार यहाँ भी आएं .....

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Asha Lata Saxena ने कहा…

देह के अपने ------पायलिया रे |पंक्तिया बहुत अच्छी लगीं |
आशा

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मधुर गीत सी ... लयबद्ध, प्रेम विरह ओर विविध रंगों को समेटे ... सुन्दर काव्य ...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

दिन तो डूब रहा जीवन का
सांझ ढले, फिर रात पिया रे ।
नही इस पार जिया अब लागत
नैन लगे उस पार पिया रे ।

शब्दों और भावों का रुन-झुन प्रवाह।

Rajput ने कहा…

बहुत शानदार रचना , आभार

Aruna Kapoor ने कहा…

आशा जी!...जीवन की कटु सच्चाई को आपने कितनी आसानी से शब्दों में ढाला!...प्रशंसा के लिए मेरे पास और शब्द नहीं है!

Alpana Verma ने कहा…

'पूजा गृह में नन्हे कान्हा मन में बस सुमिरन बंसिया रे । तुलसी का एक छोटा बिरवा एहि अब रहत मोर बगिया रे '
क्या खूब!

कविता बहुत सरस लगी.
दिल्ली प्रवास आनन्दमयी हो.

वर्षा ने कहा…

उम्मीद है ज़िंदगी ढर्रे पर लौट आयी होगी, कविता बेहद सुंदर है, मुझे बहुत अच्छी लगी